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बड़सर बस स्टैंड: 14 वर्षों की देरी और अधूरे सपनों की कहानी

By Sonam Sharma
बड़सर बस स्टैंड: 14 वर्षों की देरी और अधूरे सपनों की कहानी

बड़सर उपमंडल में बस स्टैंड का निर्माण एक ऐसा मुद्दा है जो पिछले डेढ़ दशक से स्थानीय निवासियों के लिए निराशा का कारण बना हुआ है। मुख्य समस्या यह है कि राजनीतिक वादे, नौकरशाही की देरी, भूमि हस्तांतरण की समस्याएं, और स्थानीय हितों के टकराव के कारण यह परियोजना लगातार स्थगित होती रही है। तीन अलग-अलग सरकारों के दौरान कई बार वादे किए गए लेकिन धरातल पर कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।

Timeline of Badsar Bus Stand Construction: 14 Years of Delays and Promises

Timeline of Badsar Bus Stand Construction: 14 Years of Delays and Promises

राजनीतिक वादों और वास्तविकता के बीच का अंतर

2012: पहला वादा और शिलान्यास

2012 में तत्कालीन भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने मैहरे कस्बे में बस अड्डा बनाने के लिए शिलान्यास किया था। यह वादा स्थानीय जनता की दशकों पुरानी मांग को देखते हुए किया गया था, लेकिन इसके बाद के वर्षों में इस परियोजना पर कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई।

2022-23: नई सरकार, नए वादे

सुखवंदर सिंह सुखू सरकार के सत्ता में आने के बाद 2022 में इस परियोजना को पुनर्जीवित करने की कोशिश की गई। स्थानीय विधायक इंद्रदत्त लखनपाल ने जनवरी 2023 में घोषणा की कि “दो वर्षों के भीतर बड़सर में अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त बस स्टैंड का निर्माण कार्य पूरा कर दिया जाएगा”।

Barsar Bus Stand

HRTC bus stand in Manali, Himachal Pradesh showing parked buses and people moving around

2024: बजटीय आवंटन लेकिन अमल नहीं

जनवरी 2024 में मुख्यमंत्री सुखू ने बड़सर निर्वाचन क्षेत्र के लिए 150 करोड़ रुपए के विकास पैकेज की घोषणा की, जिसमें बड़सर में आधुनिक बस स्टैंड के निर्माण के लिए 50 लाख रुपए का आवंटन शामिल था। इसके बावजूद आज तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है

भूमि हस्तांतरण की जटिल समस्या

दानदाताओं की भूमि और कानूनी अड़चनें

स्थानीय लोगों ने लगभग 35 वर्ष पहले बस स्टैंड के निर्माण के लिए 30 कनाल भूमि दान में दी थी। हालांकि, एचआरटीसी (हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन) के नाम अभी तक इस जमीन को ट्रांसफर नहीं किया गया है, जो निर्माण में मुख्य बाधा है।

वर्तमान में बड़सर में बस अड्डा बनाने के लिए केवल 12 कनाल भूमि ही उपलब्ध है, जबकि परिवहन निगम को 10 कनाल अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता है। एचआरटीसी हमीरपुर के उपमंडलीय प्रबंधक विवेक लखनपाल के अनुसार, “जैसे ही यह जगह विभाग को सौंपी जाती है तो यहां पर बस अड्डे का निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाएगा”।

बड़सर बनाम मैहरे: स्थानीय हितों का टकराव

Badsar vs Mehre Bus Stand Location Debate: Stakeholder Positions

बड़सर समर्थकों के तर्क

बड़सर के स्थानीय निवासियों का मुख्य तर्क यह है कि उन्होंने कई दशक पहले बस स्टैंड के लिए भूमि सरकार को दान की थी। इसलिए उनकी मांग है कि बस स्टैंड केवल बड़सर में ही बनाया जाना चाहिए। विधायक इंद्रदत्त लखनपाल भी इस स्थिति का समर्थन करते हैं और दानदाताओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हैं

मैहरे व्यापारियों के तर्क और विरोध

मैहरे के व्यापारियों और स्थानीय लोगों का कहना है कि उपमंडल का मुख्य व्यापारिक और प्रशासनिक केंद्र मैहरे है

  • अधिकतर सरकारी कार्यालय और बाजार मुख्यतः मैहरे में स्थित हैं
  • दो दर्जन से अधिक गांवों के लोग मैहरे बाजार में खरीदारी करते हैं
  • वर्तमान में मैहरे बस स्टॉप पर बसों के 5-10 मिनट रुकने से ट्रैफिक जाम की समस्या होती है
  • बड़सर से मैहरे बाजार की दूरी लगभग एक किलोमीटर है, जो यात्रियों के लिए असुविधाजनक हैamarujala

Traffic congestion on a hilly highway with trucks and vehicles lined up, illustrating challenges in managing road transport in mountainous areas

नौकरशाही और प्रशासनिक चुनौतियां

सर्वे की गई लेकिन अमल नहीं

2022 के बाद कोर्ट प्रिसाइजर बड़सर के साथ लगती जगह को चिह्नित कर वहां सर्वे कराए गए। बस अड्डा प्राधिकरण के लोग, स्थानीय विधायक इंद्रदत्त लखनपाल और रेवेन्यू विभाग के अधिकारी कई बार जमीन का सर्वे कर गए, लेकिन बावजूद इसके निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया[जैसा कि क्वेरी में बताया गया]।

एचआरटीसी की संस्थागत समस्याएं

हिमाचल प्रदेश में परिवहन अवसंरचना की व्यापक समस्याएं हैं। एचआरटीसी के 3,700 रूटों में से केवल 10% लाभकारी हैं, और निगम प्रति किलोमीटर 23-25 रुपए का नुकसान उठा रहा है। इससे नई परियोजनाओं के लिए धन की कमी की समस्या बनती है।

हिमाचल प्रदेश में बस स्टैंड निर्माण की व्यापक समस्याएं

राज्यव्यापी देरी का पैटर्न

हिमाचल प्रदेश में कई बस स्टैंड परियोजनाएं देरी से चल रही हैं। हमीरपुर बस स्टैंड भी 20 साल की देरी के बाद वर्तमान में निर्माणाधीन है, जिसे 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य है। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर भी समान देरी देखी जा रही है।

Construction workers at an early-stage government infrastructure project with extensive steel reinforcements reuters

भौगोलिक और तकनीकी चुनौतियां

पहाड़ी इलाकों में निर्माण कार्य अत्यधिक चुनौतीपूर्ण होता है। भूमि अधिग्रहण, पर्यावरणीय मंजूरी, भूस्खलन का खतरा, सीमित कार्य सत्र, और उच्च निर्माण लागत जैसी समस्याएं परियोजनाओं में देरी का कारण बनती हैं।

वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएं

2025 की वास्तविकता

अगस्त 2025 तक भी बड़सर बस स्टैंड का निर्माण शुरू नहीं हो पाया है। जमीन का एचआरटीसी के नाम ट्रांसफर नहीं होना मुख्य बाधा बनी हुई है। स्थानीय लोगों में निराशा बढ़ रही है कि कहीं यह परियोजना भी अन्य सरकारी परियोजनाओं की तरह अधूरी न रह जाए।

Himachal Road Transport Corporation (HRTC) bus showing public transport service in Himachal Pradesh

सरकारी प्राथमिकताओं का बदलाव

वर्तमान सुखू सरकार ने राज्य को 2026 तक “ग्रीन एनर्जी स्टेट” बनाने और बड़े पैमाने पर पर्यटन अवसंरचना विकसित करने पर ध्यान दिया है। इसके कारण छोटी स्थानीय परियोजनाओं को प्राथमिकता में पीछे धकेला जा रहा है।

समाधान की दिशा

तत्काल आवश्यक कदम

  1. भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया को तेज करना: एचआरटीसी के नाम जमीन का तुरंत ट्रांसफर करना सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए।
  2. स्थानीय सहमति बनाना: बड़सर और मैहरे के बीच के विवाद को सुलझाने के लिए सभी पक्षों के साथ बैठक करना आवश्यक है।
  3. टाइमलाइन तय करना: स्पष्ट समयसीमा तय करके जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिए।

An HRTC bus on a mountainous road in Himachal Pradesh, illustrating the challenging terrain and remote connectivity often involved in regional transport.

दीर्घकालिक रणनीति

एक व्यापक परिवहन नीति बनाने की आवश्यकता है जो न केवल बड़सर बल्कि पूरे हिमाचल प्रदेश में परिवहन अवसंरचना की समस्याओं का समाधान करे। इसमें पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल का उपयोग करके तेजी से काम पूरा करने की रणनीति शामिल हो सकती है।

निष्कर्ष

बड़सर बस स्टैंड की 14 साल की देरी हिमाचल प्रदेश में विकास परियोजनाओं की व्यापक समस्याओं का प्रतिबिंब है। राजनीतिक वादे, नौकरशाही की देरी, भूमि हस्तांतरण की जटिलताएं, स्थानीय हितों का टकराव, और वित्तीय बाधाएं मिलकर इस परियोजना को लगातार स्थगित करती रही हैं।

वर्तमान स्थिति में तब तक कोई ठोस प्रगति नहीं दिखती जब तक कि सरकार इस मुद्दे को वास्तविक प्राथमिकता नहीं देती और सभी हितधारकों के बीच एक स्थायी समाधान नहीं निकालती। स्थानीय जनता का धैर्य समाप्त हो रहा है और उनकी बुनियादी परिवहन सुविधाओं की मांग अभी भी अधूरी है।

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